Kahani sharma

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कैसी है ज़िन्दगी भाग --7





ये जिंदगी  न बहुत छोटी सी है कब कहाँ क्या हो जाए किसी को नही पता सच्चा प्रेम बड़े नसीब वालो को मिलता है नही तो आज कल के लोग कैसे होते है प्यार के नाम पर फरेब करते है कदम कदम पर धोखे दे जाते है जरूरी नही है हमें अगर किसी प्यार है तभी हम उसे प्यार दे जो हमसे प्यार करे उसे भी हमे बदले में प्यार देना चाहिए सूरत नही इंसान की सीरत देखनी चाहिए सूरत तो सके वक़्त के साथ ढल जाती है पर एक सीरत ही है जो कभी नही बदलती एक समान ही रहती है ! 


तुझे भाभी पर फक्र होना चाहिए जो तेरे एक हुकुम का पालन करती है तेरी हर अच्छी बुरी बातों को भी सम्मान देती है तेरा ख्याल रखती है ! 


और क्या चाहिए होता है औरतों को हम मर्दों से बस थोडा से प्यार ही तो मांगती है उस के बदले में हंमे अपनी पूरी ज़िंदगी हमारे नाम कर देती है हमारा परिवार को आने स्नहे से सींचती है हमारे वंश बेल को आगे बढ़ाती है ! 


दुख हो या सुख हो हमारा पूरा साथ निभाती है किन ही दर्द में क्यों न हो हमेशा तत्थ पर रहती है हमारे परिवार की खातिर आराम देह बिस्तर भी उन्हें काटो से चुभता है आराम को हराम समंझ कर दिन रात गृहस्थ जीवन मे लगी रहती है ! 


अगर भगवान ने करे कल को उन्हें कुछ हो गया तो तुझे समंझ में आएगा कि तूने क्या खो दिया ज़िंदगी काटने को दौड़ती है मुझ से पूछ कैसे तड़प रहा हूँ उससे बिछड़ कर सब है पर वो नही है ! 


तेरी बात अलग है यर तू मुझ से लाख गुना अच्छा है तेरी किस्मत और मेरी किस्मत में जमीन आसमान का फर्क है देख तू जो भी बोले पर ये मेरी ज़िंदगी मे पनोती ही बन कर आई है! एक तो शादी ऐसी लड़की से कर दी फिर ऊपर से तीन तीन लडकिया मेरे मत्थे मड दी ! 


इसकी बेटीया भी इसके जैसी है चारो  मिल  कर मेरा खून जलाते रहते हैं कहा से इन तीनो का भरना भरता रहूँगा एक तो हु ही रही है शादी के लायक, कहा से करूंगा  तीनो का इंतज़ाम मेरे सर का एक एक बाल गिरवी रखवा देगी ये तो , 


नही यर तेरी बेटियां बहुत ही प्यारी है एक बार उन्हें  है प्यार से देख तो तू पूरे जहाँ की खुशियां नजर आएंगी तुझे इ

इन तीनो में तेरी बड़ी बेटी बड़ी ही होनहार है सुन्दर है पढ़ा उसे एक दिन तेरा नाम रोशन करेगी तेरा ! 


बस बस तू तो अब रहने ही दे बहुत हो गया परिवार पुराण 

सब कहने की बाते है जी पर बीतती है ना वो ही जानता है तेरी बेटियां नही है ना इस लिए इतने बोल आ रहे हैं एक बेटी भी होती न तो जितना बोल रहा है ना एक भी बोल मुँह से नही फूटते तेरे , 


मुझे बेटी की बहुत चाह है वो तो भगवान ने ये सुख भी हम से छीन लिया नही तो मेरी तो ये ही दुआँ थी एक बेटी होती बस तक मेरा परिवार पूरा हो जाता बेटियां पापा का गुरुर होती है ना कि सर का बोझ , जो तू समझता है मेरी सोच ऐसी नही है पढ़े लिखे हो कर भी ये सोच रखता है ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा जो खुद की ही नज़रों में छोटा बना दे तेरी अनपढ़ पत्नी ही अच्छी है बेटियों को तेरे लाख न चाहने पर भी पढ़ा रही है ! 


रामलाल सर झुका लेता है , थोड़ी देर दोनो के बीच एक खामोशी छा जाती है फिर कुछ सोच कर वो बोलता है तू मुझे अपनी कोमल दे दे ! 


क्या क्या मतलब है तेरा मैं कोमल को अपने घर की बहू बनाना चाहता हु मुझे वो पसंद आई है शहर जा कर पढ़ भी लेगी तुझे उसकी चिंता करने की जरूरत नही पड़ेगी मैं हूँ अभी , रामलाल की तो बाँछे खिल जाती है मेरे लिए इससे बड़ी खुशी की और क्या बात हो सकती है जो मेरा जिगरी दोस्त मेरा समधी बन जाये तो रामलाल उसे गले लगा लेता है!



ये क्या अभी तक तो लग रहा था रामलाल का दोस्त बहुत ही सुलझा हुआ इंसान हैं पढ़ाई लिखाई ओर शहर के माहौल का परिवेश में ढल हुआ उसका व्यक्तित्व है पर ये तो बाल विवाह को प्रोत्साहित कर रहा है अभी तक तो बेटियों के भविष्य को लेकर रामलाल को पाठ पढ़ा रहा था आखिर क्या इरादे है उसके क्या करना चाहता है वो रामलाल के परिवार के साथ ये दोस्ती निभा रहा है या कोई पुरानी दुश्मनी इस का अभी तक रामलाल को भी भनक तक नही है ये सब जानने के लिए मिलते हैं कैसी है ये जिंदगी के अगले भाग में 🙏 



 क्रमशः 


कहानी शर्मा 

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9 Comments

Supriya Pathak

11-Oct-2022 06:24 PM

Bahut khoob 💐👍

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🙏🙏🙏y

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बहुत खूब लिखा है 💐🌸🌺👌

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